Monday, June 10, 2013

बाजार मेरे पीछे पड़ चुका है- उमेश शुक्ला

ओह माय गॉड! की कामयाबी के बाद अपने जीवन में आए बदलावों के बारे में रघुवेन्द्र सिंह को बता रहे हैं उमेश शुक्ला
                                             ओह माय गॉड! के सेट पर अक्षय कुमार के साथ
उगता सूरज फिल्म इंडस्ट्री को बहुत पसंद है और ओह माय गॉड! फिल्म की शानदार सफलता के बाद उमेश शुक्ला नाम के एक नए सूरज का उदय हो चुका है. बाजार मेरे पीछे पड़ा है और सबका मेरे प्रति नजरिया बदल गया है. हंसते हुए उमेश शुक्ला कहते हैं, साथ ही वह आत्मविश्वास के साथ जोड़ते हैं, लेकिन मैं सबसे कहता हूं कि जब तक मुझे अच्छी कहानी नहीं मिलेगी, मैं किसी के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं करूंगा. ओह माय गाड! 2012 की एक उल्लेखनीय फिल्म थी. इसने अंध आस्था पर प्रश्न उठाए और फिर सटीक और तार्किक जवाब देकर सबका दिल जीत लिया. अब उमेश की अगली फिल्म मेरे अपने पर नजरें टिकी हैं, जिसकी घोषणा उन्होंने हाल में की. इसमें नायक अभिषेक बच्चन होंगे और इसका निर्माण भूषण कुमार (टी-सीरीज) कर रहे हैं. मेरे अपने टेंटिटिव टाइटल है. इसका विषय यूनिवर्सल है. मां-बाप का अपने बच्चों और बच्चों का अपने मां-बाप के प्रति आज क्या नजरिया है, यह इसका विषय है. यह पारिवारिक फिल्म है. गौरतलब है कि मेरे अपने शीर्षक से गुलजार ने 1971 में एक सफल फिल्म बनाई थी. हां, लेकिन गुलजार साहब की फिल्म कम्युनल हारमनी पर आधारित थी. मेरी फिल्म अपनेपन की बात करती है. समानता का खंडन करते हुए उमेश कहते हैं.
उमेश शुक्ला पच्चीस वर्ष से थिएटर में सक्रिय हैं. इसकी शुरूआत मीठीबाई कॉलेज में ग्रेजुएशन के दौरान नाटकों में अभिनय से हुई. फिर अनुभव बढऩे के साथ-साथ वे नाटकों का लेखन और निर्देशन करने लगे. तिकड़मबाज, कांजी विरूद्ध कांजी, बचू बची गयो, कोई केतन पारेख ने बचाओ, नटू आईलवयू जैसे पच्चीस से अधिक लोकप्रिय नाटकों का लेखन-निर्देशन किया. थिएटर के बाद वह टीवी से जुड़े. तारक मेहता का उल्टा चश्मा, हम सब एक हैं, ये दुनिया है रंगीन और लक्स क्या सीन है उनके लिखित सफल कार्यक्रम हैं. 2008 में जब उन्होंने अपनी पहली फिल्म ढूंढ़ते रह जाओगे शुरू की तो, टीवी से अलग हो गए. उन्होंने पहली फिल्म अनुराग बासु के लिए कुछ तो है (2003) लिखी थी. बाद में, उन्होंने जोड़ी क्या बनाई वाह-वाह रामजी, किस किस की किस्मत, बचके रहना रे बाबा और फूल एन फाइनल फिल्मों का लेखन भी किया, लेकिन ये उन्हें पहचान दिलाने में असफल रहीं. मैं तब अनुभवी नहीं था. ये एक प्रोसेस है. आप धीरे-धीरे सीखते हैं. उमेश अपनी बात रखते हैं.
शायद आप जानते नहीं हैं कि उमेश फिल्मों में अभिनय भी कर चुके हैं. उमेश मेहरा के निर्देशन में बनी यार गद्दार (1994) में उन्होंने सैफ अली खान और मिथुन चक्रवर्ती के अपोजित विलेन की भूमिका निभाई थी. तीन-चार फिल्मों में हीरो के दोस्त के नायक की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने अभिनय से तौबा कर ली. अगर यार गद्दार चल गई होती, तो मैं विलेन बनकर रह जाता. शुक्र है कि वह नहीं चली. मैं हमेशा से केवल लिखना और निर्देशित करना चाहता हूं. पता नहीं फिल्मों में अभिनय करने का फैसला मैंने क्यों लिया था. हंसते हुए उमेश कहते हैं.
उमेश मुंबई में पले-बढ़े हैं. उनके पुरखे, दादा और पिताजी कर्मकांडी ब्राह्मण हैं. उमेश स्वयं कॉलेज के दिनों तक लोगों के घरों में पूजा-पाठ और विवाह कराने जाया करते थे, लेकिन बाद में उनके मन में कुछ सवाल उठे, जिनका जवाब न पाकर उन्होंने परिवार से बगावत कर दी. उमेश बताते हैं, पूजा के दौरान एक विधि होती है, जिसमें हम जजमान को कान और आंख से पानी लगाने को कहते हैं. एक बार मैंने ऐसे ही कहा कि नाक से पानी छूआइए, जजमान ने कर दिया. मुझे लगा कि जब इन्हें नहीं पता है, तो ये जिस ईश्वर के लिए कर रहे हैं, उस तक ये बात कैसे पहुंचेगी. मैंने कई बार श्लोक का अर्थ बताकर समझाने की कोशिश की, तो लोग चुटकी बजाकर बोलते थे कि महाराज, जरा जल्दी खत्म कीजिए ना. मुझे इन सबमें आडंबर लगा और मैं इन सबसे अलग हो गया.
अब आप समझ सकते हैं कि उमेश शुक्ला ने ओह माय गाड! जैसी फिल्म का लेखन एवं निर्देशन क्यों किया. इसका श्रेय मेरे सह-लेखक भावेश मांडलिया को भी जाता है. उन्होंने एक ऑस्ट्रेलियन फिल्म देखी थी- द मैन हू सूड गॉड. उसमें एक आदमी भगवान पर केस कर देता है. हमें वह आइडिया अच्छा लगा. हमने उसे भारतीय परिवेश एवं समस्याओं के अनुरूप ढाला और कांजी विरूद्ध कांजी नाटक लिखा. बाद में परेश भाई (रावल) और अक्षय कुमार के आने पर यह ओह माय गॉड! फिल्म के रूप में देश के सामने आई. ईमानदारी से उमेश बताते हैं.
ओह माय गॉड! की कामयाबी के बाद उमेश के निजी जीवन में एक और बदलाव आया है. अब वे सांताक्रुज ईस्ट से जुहू में शिफ्ट हो गए हैं. उनके घर की बालकनी से पृथ्वी थिएटर का प्रांगण नजर आता है.  मुझे मंदिर के दर्शन न हों, तो चलेगा, लेकिन थिएटर सुबह-सुबह नजर आ जाए, तो मेरा दिन सफल है. मैं थिएटर से दूर नहीं हो सकता. हल्की मुस्कान के साथ उमेश ने कहा.

साभार: फिल्मफेयर



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