Monday, May 23, 2011

सोच मिली और हो गई दोस्ती


अभिषेक पाठक और लव रंजन की मुलाकात एक कॉमन दोस्त की शादी में हुई। दोनों न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग लेकर लौटे थे। दोनों हिंदी सिनेमा को एक नई पहचान देना चाहते हैं। सोच मिली, तो दोनों के बीच दोस्ती हो गई। उस दोस्ती का फल है प्यार का पंचनामा। 
भरोसा था : अभिषेक पाठक जाने-माने निर्माता कुमार मंगत के बेटे हैं। उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बूंद बनाई है, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। निर्देशन में अगला कदम बढ़ाने की बजाए अभिषेक फिल्म निर्माण में आ गए। उन्होंने नए निर्देशक लव रंजन को ब्रेक दिया। अभिषेक पाठक कहते हैं, लव से मेरी मुलाकात बूंद के निर्माण से पहले हुई थी। उनकी स्क्रिप्ट मुझे अच्छी लगी। मैंने कहा कि आप फिल्म डायरेक्ट कीजिए और मैं प्रोड्यूस करता हूं। मैं अपनी फिल्म बाद में डायरेक्ट करूंगा। मुझे लव की काबिलियत पर भरोसा था। लव रंजन अभिषेक के प्रति आभारी हैं। उनका कहना है कि प्यार का पंचनामा की मेकिंग के दौरान उनकी दोस्ती और मजबूत हो गई। दोनों एक दिशा में जाना चाहते हैं।

मिला मंजिल का पता : इंडस्ट्री में पले-बढ़े होने के कारण अभिषेक को पता था कि वे बड़े होकर फिल्मों में करियर बनाएंगे। अभिषेक पाठक कहते हैं, इंडस्ट्री का हर लड़का बड़ा होकर हीरो बनना चाहता है। भले ही कुछ लोग इस बात को स्वीकार न करें। मैंने स्कूल में शॉर्ट फिल्में बनाई। उनमें मैंने एक्टिंग भी की। बाद में मुझे महसूस हुआ कि कैमरे के पीछे रहने में ज्यादा मजा है। डायरेक्टर के इशारे पर ऐक्टर काम करता है। मैंने फिल्म मेकिंग में आने का फैसला कर लिया। उधर, गाजियाबाद में गैर फिल्मी पृष्ठभूमि के लव रंजन को लेखन का शौक फिल्मों में खींचकर ले आया। लव बताते हैं, नोएडा में तीन महीने का कोर्स करने के बाद महसूस हुआ कि फिल्म मेकिंग में ही मुझे करियर बनाना है। 2002 में मुंबई आ गया। अगले दिन सुनील दर्शन के यहां असिस्टेंट डायरेक्टर की नौकरी मिल गई। बरसात और दोस्ती में उनका सहायक था।
यूथ फिल्म है यह : अभिषेक पाठक और लव रंजन के अनुसार प्यार का पंचनामा यूथ फिल्म है। फिल्म के लेखक-निर्देशक लव रंजन कहते हैं, निजी अनुभवों के आधार पर मैंने फिल्म की कहानी लिखी है। मेरे कई दोस्त थे। अचानक एक उम्र ऐसी आई, जब सबको प्यार हो रहा था। सब फोन पर ज्यादा वक्त बिताते थे। सबकी भाषा सुधर गई थी। एक-दो तो डरे-डरे भी रहते थे। उनके कपड़े बदल गए थे। वे क्रिकेट मैच छोड़कर शॉपिंग मॉल में घूमते मिलते थे। मैंने सोचा कि अब तक जो हिंदी फिल्में बनी हैं उनमें दिखाया गया है कि लड़के लड़कियों को परेशान करते हैं और लड़कियां एडजस्ट करती हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होता। अब लड़कियां लड़कों को बदल देती हैं। उन्हें डॉमिनेट करती हैं। लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप, एक्स ब्वॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड जैसी चीजें अब कपल की नई समस्याएं हैं। फिल्म में यही बात है।
-रघुवेंद्र सिंह 

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