Saturday, March 12, 2011

मैं फालतू नही: पूजा गुप्ता

वर्ष 2007 में मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली पूजा गुप्ता, वाशु भगनानी की फिल्म फालतू से अभिनय करियर की शुरुआत कर रही हैं। दो साल संघर्ष करने के बाद उन्हें यह फिल्म मिली है। पूजा बताती हैं, मिस इंडिया बनने का लाभ यह हुआ कि लोग मुझे जान गए। मिस इंडिया बनने के बाद ऐसा नहीं होता कि आपके पास फिल्म निर्माता-निर्देशकों की लाइन लग जाती है। पहली फिल्म के लिए मुझे दो साल तक संघर्ष करना पड़ा। मुझे जब पता चलता था कि फलां जगह फिल्म का ऑडिशन चल रहा है, तो मैं ऑडिशन देने जाती थी। किसी ने यह समस्या बताकर मुझे सेलेक्ट नहीं किया कि मेरा उच्चारण सही नहीं है। कोई कहता था कि मैं गोरी हूं। कुछ लोगों ने कहा कि मैं छोटी हूं। अब मेरी किस्मत चमकी है। मेहनत अब सफल हुई है।
फालतू फिल्म का निर्देशन मशहूर कोरियोग्राफर रेमो डिसूजा ने किया है। पूजा का इस फिल्म से जुड़ने का किस्सा दिलचस्प है। वे अपने एक फ्रेंड के घर पार्टी में गई थीं। उस पार्टी में वाशु भगनानी के बेटे जैकी भी मौजूद थे, जो फिल्म के एक हीरो हैं। उन्हें पूजा बहुत अच्छी लगीं। पूजा बताती हैं, उस पार्टी में जैकी मौजूद थे, लेकिन उनसे मेरी बातचीत नहीं हुई थी। उन्होंने रेमो से जाकर कहा कि पूजा से मिलिए। उन्होंने मेरे फ्रेंड से नंबर लेकर मुझे फोन किया। मैं जब फालतू के लिए ऑडिशन देने गई, तब जैकी से पहली बार मेरी बात हुई। पांच बार ऑडिशन हुआ, फिर रेमो ने मुझे सेलेक्ट किया।
पूजा ने फिल्म में पूजा नाम की लड़की का ही किरदार निभाया है। वह टॉम ब्वॉय टाइप की है। पूजा बताती हैं, वाशु भगनानी के लिए पूजा नाम लकी है। उनकी कंपनी का नाम पूजा एंटरटेनमेंट है। मैंने फिल्म में अपने किरदार का नाम पूजा रखने के लिए उनसे बात की तो वे मान गए। तीन लड़कों के साथ पूजा बड़ी हुई है। उसके पापा चाहते हैं कि वह शादी करके अपना घर बसा ले, लेकिन वह शादी नहीं करना चाहती। वह लाइफ को अपने अंदाज में जीना चाहती है। पूजा के अनुसार फिल्म फालतू भारत के एजुकेशन सिस्टम पर कटाक्ष करती है। वे कहती हैं, कॉलेज में साठ प्रतिशत और अस्सी-नब्बे प्रतिशत अंक पाने वाले लोगों को ही एडमिशन मिलता है। तीस प्रतिशत अंक लाने वालों को नहीं। फिल्म के अंदर पूजा और उसके दोस्तों रितेश, नंज, विष्णु को लोग फालतू कहते हैं, लेकिन उनका कहना है कि वे फालतू नहीं हैं।
पहली फिल्म की शूटिंग का अनुभव पूजा के लिए अच्छा रहा। वे बताती हैं, मैं फिल्म में अकेली लड़की हूं। सेट पर मेरा बहुत ख्याल रखा जाता था। वाशु अपनी बेटी की तरह मेरा ख्याल रखते थे। रेमो भी बहुत अच्छे निर्देशक हैं। मैं लकी हूं कि मुझे ऐसी टीम के साथ काम करने का मौका मिला। पूजा आगे कहती हैं, इस फिल्म में मुझे अपना टैलेंट दिखाने का पूरा अवसर मिला है। मैं खुश हूं कि फालतू मेरी डेब्यू फिल्म है।
दिल्ली में पली-बढ़ी पूजा गुप्ता का बचपन का सपना था ऐक्ट्रेस बनना। वे कहती हैं, यदि मैं मिस इंडिया नहीं बनती, तो भी ऐक्ट्रेस बनती। मैंने होश संभालते ही तय कर लिया था कि मुझे नौ से पांच बजे की नौकरी नहीं करनी। मेरी मां डॉक्टर हैं, भाई इंजीनियर हैं और पापा सीए थे। मैं पहली ऐसी लड़की हूं अपने परिवार में, जिसने गे्रजुएशन नहीं किया। लक्ष्य के बारे में पूछने पर पूजा कहती हैं, मैं आज में जीती हूं। यदि आज अच्छा होगा, तो भविष्य भी अच्छा होगा। मैं मल्टीटास्किंग नहीं हूं। फिलहाल मेरा ध्यान अपनी पहली फिल्म की रिलीज पर है।
-रघुवेंद्र सिंह 

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