Tuesday, March 15, 2011

बस यादों में ही बचा है मैजेस्टिक सिनेमा


मुंबई, १५ मार्च.  हिंदी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म आलम आरा का प्रिंट ही नहीं गायब हुआ है बल्कि इस फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी रहे मैजेस्टिक सिनेमा का भी नामो-निशां  मिट चुका है। दक्षिण मुंबई में गिरगांव  में स्थित मैजेस्टिक  सिनेमा के स्थान पर अब बहुमंजिला मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर खड़ा हो चुका है।

चौदह मार्च, 1931  को मैजेस्टिक  सिनेमा में प्रदर्शित हुई आलम आरा फिल्म के अस्सी वर्ष पूरे होने पर अखबार, न्यूज चैनल एवं पत्र-पत्रिकाओं में जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन मैजेस्टिक  सिनेमा की जमीं पर खड़ी व्यावसायिक इमारत में लोग आलम-आरा के प्रदर्शन के अस्सी साल के जश्न से अंजान हैं। डायमंड व्यापारी रोज की तरह लेन-देन और ग्राहकों के इंतजार में बैठे हैं। दिलचस्प बात यह है कि गिरगांव  की नई पीढ़ी इस बात से भी अंजान है कि उनके इलाके में मैजेस्टिक  सिनेमा हुआ करता था। मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर में ग्राउंड फ्लोर पर चौबीस वर्षो से ट्रवेल  एजेंसी चला रहे प्रकाश दलवी  बताते हैं, बचपन में हम परिवार के साथ मैजेस्टिक  सिनेमा में फिल्में देखने आते थे। मराठी फिल्में ज्यादा चलती थीं, लेकिन टॉवर  कल्चर ने मैजेस्टिक  सिनेमा को कुचल दिया। अब तो हमारी यादों में ही मैजेस्टिक  सिनेमा है।
गौरतलब है कि मैजेस्टिक  शॉपिंग  सेंटर के मालिक गोवाली बिल्डर्स हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि गोवाली बिल्डर्स ने जब मैजेस्टिक  सिनेमा के स्थान पर शॉपिंग  सेंटर बनाना शुरू किया तो शिवसेना के नेता प्रमोद नवलकर  ने उनका विरोध किया। शिवसेना की मांग पर गोवाली बिल्डर्स ने मैजेस्टिक  थिएटर के लिए स्थान छोड़ा था, लेकिन बाद में पार्किग  स्पेस  की कमी के कारण थिएटर बनाने का विचार छोड़ना पड़ा। मैजेस्टिक  शॉपिंग सेंटर के सामने स्थित मैजेस्टिक  सिनेमा बस स्टॉप  के जरिए ही पता चलता है कि यहां मैजेस्टिक  सिनेमा हॉल  हुआ करता था। अब बस स्टॉप  में ही मैजेस्टिक  सिनेमा का इतिहास शेष है।
चौदह मार्च 1931  में हंड्रेड  परसेंट टॉकी  का दावा करती फिल्म आलम आरा का प्रदर्शन मैजेस्टिक सिनेमा में हुआ था। अर्देशिर  ईरानी निर्देशित आलम-आरा का जादू देखने भारी भीड़ इस थिएटर के बाहर उमड़ी थी। प्रतिदिन आलम आरा के तीन शो साढ़े शाम पांच बजे, आठ बजे और दस बजे चलाया जाता था। शनिवार, रविवार और बैंक की छुट्टियों के दिन तीन बजे का स्पेशल शो चलाया जाता था। स्कूल और कॉलेज  के लड़के-लड़कियों के लिए रविवार को सुबह दस बजे एक स्पेशल शो रखा गया था। अखबार में आलम-आरा का विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद कुछ सप्ताह के टिकट बिक गए थे और हिंदी सिनेमा की इस पहली बोलती फिल्म ने सफलता का कीर्तिमान रच दिया, पर अफसोस की बात यह है कि आज न तो आलम आरा के प्रिंट उपलब्ध हैं और न ही फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी बना मैजेस्टिक  सिनेमा हॉल। 
-रघुवेन्द्र सिंह 

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