Wednesday, February 9, 2011

किस किसको खुश करूं: रानी मुखर्जी

फिल्म नो वन किल्ड जेसिका में अपने रोल के लिए रानी मुखर्जी को आजकल ढेरों बधाई संदेश आ रहे हैं। जिन लोगों ने मान लिया था कि रानी का राज खत्म हो चुका है, अब वे अपनी उस नासमझी के लिए रानी की क्षमता को स्वीकार रहे हैं। रानी भी खुश हैं। इस खुशी में उन्होंने हमें भी शामिल किया।
नो वन किल्ड जेसिका के लिए मिल रही सबसे आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया क्या है?
बहुत सारे लोगों ने आकर कहा कि आप फिल्म में हीरो की तरह हो। वह कमेंट सुनकर मजा आया। उन्हें लगा कि मीरा उस लेवल का कैरेक्टर था कि उसे कोई आदमी भी कर सकता था। वह सरप्राइजिंग लगा। दो-तीन जर्नलिस्ट ने मेरे बारे में लिखना बंद कर दिया था। उन्होंने मुझे फोन करके माफी मांगी और कहा कि हमें थप्पड़ मार दो रानी। हम गलत थे। वे बातें दिल को छू गई। पर्दे पर आपका गालियां देना लोगों को अच्छा नहीं लगा। सुना जा रहा है कि आपके पैरेंट्स भी इस बात से आहत हैं?
जब आप एक किरदार निभा रहे होते हैं तो बहुत कंविक्शन के साथ काम करना पड़ता है। बहुत लोग कह सकते हैं कि मुझे गालियां नहीं देनी चाहिए थीं, पर कुछ लोगों की राय है कि वह सही था। दोनों टाइप के रिएक्शन मुझे मिले हैं। मैं किस किस को खुश करूं यार..? वैसे भी हर बार सबको खुश नहीं किया जा सकता है, लेकिन मुझे लगता है कि इस बार ज्यादा लोग खुश हुए हैं। उसकी वजह से बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को अच्छा कलेक्शन मिला है।
आपने अब तक जितनी फिल्में कीं, उनमें कितनी अपनी और कितनी दर्शकों की पसंद से कीं? दोनों में सफलता का प्रतिशत क्या रहा?
दोनों का प्रतिशत समान है। बहुत बार ऐसा होता है कि आप सोचते हो कि ऑडियंस को फिल्म पसंद आएगी और वह नहीं आती है। कभी-कभी आप अपनी पसंद से करते हो और वह आडियंस को भी पसंद आती है। जैसे दिल बोले हडि़प्पा, मुझे लगा था कि यह ऑडियंस को बहुत पसंद आएगी। उसमें रोमांस, कॉमेडी, ऐक्शन, डांस, इमोशन, ड्रामा, सॉन्ग, स्पो‌र्ट्स सब कुछ था। एंटरटेनिंग फिल्म थी। लगा कि हर उम्र के लोगों को अच्छी लगेगी, लेकिन यह ज्यादा लोगों को पसंद नहीं आई। जिस तरह से फिल्म चलनी चाहिए थी, नहीं चली। जैसे कि इस बार मैंने नो वन किल्ड जेसिका की। मैंने सोचा कि मुझे पसंद आएगी और दर्शकों को भी। यह ऐसा सब्जेक्ट था जिससे हम सभी रिलेट करते हैं।
फिल्मों में आप लंबे समय से हैं। उसका इस्तेमाल आप दूसरे तरीके से करने के बारे में क्यों नहीं सोचतीं?
आपका मतलब है फिल्म प्रोडक्शन..। यहां अपने अनुभव का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन मैं हर काम समझदारी और समर्पण से करती हूं। मैं किरदार में घुस जाती हूं। यदि मैं प्रोडक्शन में घुसती हूं तो शायद वह मेरे एक्टिंग प्रोफेशन पर भारी पड़ सकता है। अगर आप प्रोडक्शन में आते हैं तो आपके सोचने का नजरिया अलग हो जाता है। उस डायरेक्शन में जाना मुश्किल है। मैंने मेहनत से पैसे कमाए हैं। अगर कोई फिल्म नहीं चलेगी, तो मेरा पैसा डूब जाएगा तो मुझे बहुत दुख होगा।
नए निर्देशकों को अब आप अपने साथ काम करने का मौका दे रही हैं। पुराने प्रतिष्ठित निर्देशकों से दूरी बनाने की क्या वजह है?
हम हर समय स्क्रिप्ट और कैरेक्टर के हिसाब से फिल्म का आकलन करते हैं। जैसे कि एक्सेल एंटरटेनमेंट, जो रीमा कागटी के साथ फिल्म बना रहे हैं, उस पर आमिर, करीना और मुझे भरोसा है। हमने कहानी पर भरोसा करके फिल्म साइन की है। हमें भरोसा है कि रीमा बहुत अच्छा काम करेंगी। मैंने राजकुमार गुप्ता को भी उनकी स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले के हिसाब से आंका। यशराज फिल्म्स में मैंने अलग-अलग डायरेक्टर के साथ काम किया, क्योंकि यशराज को उन पर भरोसा था। कई बार ऐसा हुआ है कि बड़े डायरेक्टर मेरे पास स्क्रिप्ट लेकर आए पर मुझे कैरेक्टर पसंद नहीं आया।
दोस्ती या रिश्ते निभाने के लिए आप फिल्में साइन नहीं करती हैं?
मैंने पीछे दोस्ती के लिए बहुत सारी फिल्में कीं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि आज वह ट्रेंड है। आज दुनिया प्रैक्टिकल हो गई है। तीन साल पहले तक मैंने दोस्ती के लिए फिल्में कीं। सांवरिया मैंने संजय लीला भंसाली के कहने पर की। संजय ने कहा था, मैं आपको मिस कर रहा हूं। मैंने फिल्म में यह रोल डाला है। चार दिन के लिए काम कर लो। मैंने दोस्ती के लिए वह फिल्म कर ली। आज यह सब नहीं चलेगा। ऑडियंस मुझे माफ नहीं करेगी। मैं साल में एक फिल्म करती हूं। उसमें अगर आडियंस को संतुष्ट नहीं करूं, तो वे नाराज हो जाएंगे। बहुत सोच-समझकर फिल्म साइन करनी पड़ती है।
टीवी के लिए काम करेंगी?
धांसू ऑफर आया तो जरूर करूंगी। मैंने देखा है कि टीवी ऐसा माध्यम है कि आडियंस के साथ तुरंत कनेक्शन होता है। हर दिन आपको लोग देख रहे हैं अपने घर में। मेरे खयाल से टीवी करना चाहिए। स्पेशली मुझे, क्योंकि मैं साल में एक फिल्म करती हूं, तो बीच में मेरा कोई टीवी शो आ जाए, जिसके जरिए आडियंस मेरे साथ कनेक्ट रह सकें। यह अच्छा होगा।
-रघुवेंद्र सिंह

No comments: