Sunday, February 6, 2011

ऊट पटांग-कैमरे का कमाल-फिल्म समीक्षा

मुख्य कलाकार : माही गिल, सौरभ शुक्ला, विनय पाठक
निर्माता-अपर्णा जोशी
निर्देशक- श्रीकांत वेलागलेटी
नए निर्देशक श्रीकांत वेलागलेटी के आकर्षक शीर्षक ऊट पटांग, विनय पाठक, सौरभ शुक्ला और माही गिल जैसे उम्दा कलाकारों की मौजूदगी से उम्मीद थी कि ऊट पटांग नए हिंदी सिनेमा की एक कड़ी साबित होगी, लेकिन सिवाय कैमरे के कमाल के फिल्म में कुछ भी सराहनीय नहीं है।
ऊट पटांग एक रात की कहानी है। कोयल और राम प्यार में धोखा खा चुके हैं। राम का जासूस दोस्त नंदू कोयल और राम को आमने-सामने बैठा देता है। पूर्व गर्लफ्रेंड संजना से प्यार में धोखा खाया राम कोयल का दुख बांटते-बांटते उसका दीवाना हो जाता है। संजना पैसे की खातिर राम को छोड़कर गैंगस्टर लकी से प्यार करती है, लेकिन वह उसे भी धोखा देकर उसके पांच करोड़ रुपये ले भागती है। पांच करोड़ रुपयों के चक्कर में नंदू, संजना और लकी के बीच चूहे-बिल्ली का आंख-मिचौली का खेल होता है। राम और कोयल अंजाने में इसका हिस्सा बन जाते हैं।
इसे लेखक-निर्देशक की कमजोरी कही जाएगी कि वे आधी फिल्म अपने किरदारों को स्थापित करने में निकाल देते हैं। दूसरे हिस्से में गैंगस्टर लकी के आने से कहानी में थोड़ी गति आती है। ऊट पटांग की विशेषता श्रीकांत का रिवर्स स्टाइल में फिल्मांकन का अंदाज है। एक ही कमरे के अंदर सभी पात्र मौजूद होते हैं, लेकिन वे अलग-अलग समय पर इसका रहस्योद्घाटन करते हैं। विनय पाठक डबल रोल में हैं। उन्होंने सीधे-सादे राम के व्यक्तित्व की सहजता को अच्छी तरह व्यक्त किया है, लेकिन गैंगस्टर लकी के किरदार में वे नाटकीय लगते हैं। फ्रेंच बोलने का उनका नाटकीय प्रयास हंसाता नहीं। माही गिल फिल्म में अनायास गालियां देती हैं और सिगरेट का धुआं उड़ाती हैं। सौरभ शुक्ला अपने किरदार में जंचे हैं। छोटी सी भूमिका में संजय मिश्रा प्रभावित करते हैं।
-दो स्टार
-रघुवेन्द्र सिंह

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