Monday, November 2, 2009

दिलवाले.. की उम्र हुई 14 साल | आलेख

"कम, फॉल इन लव..दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का यह उपशीर्षक आज भी अपने चुंबकीय आकर्षण से दर्शकों को खींच रहा है। निर्देशक आदित्य चोपड़ा और शाहरुख खान-काजोल के लिए तो जैसे मुंबई के मराठा मंदिर में पिछले चौदह वर्ष से वक्त ठहरा हुआ है। आदित्य निर्देशित डीडीएलजे ने पहली बार 20 अक्टूबर, 1995 को सिनेमाघरों में दस्तक दी थी। शुरुआत में फिल्म को साधारण सफलता मिली, लेकिन वक्त के साथ मधुर संगीत और सरल कहानी के कारण इसने दर्शकों को अपने मोह-पाश में बांधना शुरू किया। परिणाम यह हुआ कि साधारण कही जाने वाली दिलवाले दुल्हनिया.. भारतीय सिनेमा की असाधारण फिल्मों की सूची में शुमार हो गई। लगभग चौदह वर्ष बाद भी यह फिल्म मुंबई के मराठा मंदिर में दर्शकों को अपनी ओर खींच रही है।
जादू है या नशा: भारतीय मूल्यों की बातें धीमे और सूक्ष्म स्वर में कहने वाली इस फिल्म को देखते वक्त आज भी सीटियां बजती हैं, तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। लगभग तीन पीढि़यों का मनोरंजन करने वाली दिलवाले.. का मधुर संगीत आज भी झूमने को मजबूर कर देता है। शाहरुख और काजोल के भावपूर्ण अभिनय और भारतीय संस्कृति की झलक पाने के लिए आज भी दर्शक टीवी चैनलों पर इसके प्रसारण का इंतजार करते हैं। छोटे पर्दे पर इस फिल्म को देख रहे नई पीढ़ी के दर्शकों को मलाल रहता है कि वे बड़े पर्दे पर इस ऐतिहासिक फिल्म को देखने से वंचित रह गए। हालांकि मुंबई वासियों के लिए तो पिछले चौदह वर्षो से बड़े पर्दे पर इस क्लासिक फिल्म को देखने का अवसर उपलब्ध है। सुखद आश्चर्य है कि चौदह वर्ष बाद भी मराठा मंदिर में दिलवाले.. देखने आए दर्शकों की संख्या में कमी नहीं आई है। यह फिल्म का जादू है या नशा.., कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि भारतीय सिनेमा के सुनहरे सफर में मील का पत्थर बन चुकी है दिलवाले..। उल्लेखनीय है कि इस फिल्म से पूर्व मिनर्वा थिएटर में शोले पांच साल और अशोक कुमार अभिनीत किस्मत मुंबई और कोलकाता के सिनेमाघरों में तीन साल तक लगातार चली थी।
मराठा मंदिर, इतिहास और वर्तमान: 1958 में स्थापित मराठा मंदिर मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन से चंद कदम दूर स्थित है। यह अपनी खूबसूरत स्थापत्य कला और गौरवशाली इतिहास के कारण मुंबई की हेरिटेज इमारतों की सूची में शुमार हो चुका है। इसके मुख्य संचालक प्रवीण विठ्ठल राणे बताते हैं, पहली बार मुगल-ए-आजम हमारे सिनेमाघर में दो साल चली थी। हर दिन उसके चार शो होते थे। उस वक्त की तकनीक और दर्शकों का नजरिया अलग था। बदलते वक्त के साथ हमारे सिनेमाघर में भी नई तकनीक का प्रयोग किया जाने लगा। सिनेमास्कोप और साउंड सिस्टम में डिजिटिल और डॉल्वी तकनीक का प्रयोग हो रहा है। अब तो मराठा मंदिर का नाम जल्द ही गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स में दर्ज हो जाएगा। दिलवाले.. पिछले चौदह वर्षो से हमारे सिनेमाघर में चल रही है। सबसे ज्यादा समय तक किसी सिनेमाघर में दिखाई जाने वाली फिल्म बन गई है यह। मराठा मंदिर सिंगल स्क्रीन थिएटर है। स्क्रिन की ऊंचाई चौबीस फीट और चौड़ाई पचास फीट है। बैठने की व्यवस्था भी आरामदायक है। यहां कम पैसे में फिल्म देखी जा सकती है। यदि सुबह 11:30 बजे दिलवाले.. देखना है, तो बालकनी में बैठकर फिल्म का आनंद लेने के लिए बाईस रुपये और ड्रेस सर्किल में बैठने के लिए बीस रुपये खर्च करने होंगे। नई फिल्मों के टिकट दर अलग हैं।
चौदह साल का सुहाना सफर: समीक्षकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया के अभाव में दिलवाले.. शुरुआत में अधिक व्यवसाय नहीं कर पाई। ऐसा देश के हर सिनेमाघरों के साथ-साथ मराठा मंदिर में भी हुआ था। मराठा मंदिर के मुख्य संचालक प्रवीण विठ्ठल राणे बताते हैं, पहले सप्ताह में दिलवाले.. नहीं चली थी। कम दर्शक आते थे। दूसरा सप्ताह शुरू होते ही दर्शकों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी। कम-से-कम आठ-दस हफ्ते तक हाउस फुल रही। दो महीने तक इसका कलेक्शन हमारे सिनेमाघर में 92 से 95 प्रतिशत तक रहा। एक महीने बाद सुबह के शो में इस फिल्म को चलाने का निर्णय लिया। पांच से छह साल तक कलेक्शन 80 प्रतिशत के नीचे गया ही नहीं। उसके बाद साठ प्रतिशत कलेक्शन हो गया। आज भी इसका कलेक्शन पचास से साठ प्रतिशत होता है। मराठा मंदिर में दिलवाले.. के चौदह साल के सफर के गवाह हैं जगजीवन मारू। हेड प्रोजेक्शन ऑपरेटर मारू ने अपनी आंखों के सामने दिलवाले.. को हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म बनते देखा है। वे कहते हैं, मराठा मंदिर में चालीस साल से हूं।
दिलवाले.. का पहला शो मैंने ही रन किया था और आज चौदह साल बाद भी इसकी जिम्मेदारी मेरी ही है। उस समय इतने सारे टीवी चैनल नहीं थे। फैमिली के साथ लोग इसे देखने आते थे। आज तो सभी अकेले आते हैं। मुझे तो फिल्म पूरी तरह याद हो गई। लगभग साढ़े चार हजार शो मैंने रन किए हैं।
बाइस रुपये, विदेशी नजारे: मराठा मंदिर में दिलवाले.. के सुहाने सफर के पीछे कई रोचक बातें छिपी हैं। दरअसल, इसके करीब ही मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन और महाराष्ट्र राज्य परिवहन का डिपो स्थित है। ऐसे में जिन मुसाफिरों की ट्रेन या बस दो-से-तीन घंटे देर होती है, वे मराठा मंदिर जाकर बाईस रुपये में दिलवाले.. देखना घर वापस जाने या किसी महंगे रेस्टोरेंट में समय बिताने से बेहतर समझते हैं। पिछले चौदह साल से मराठा मंदिर में कार्यरत वैष्णव बताते हैं, यहां ज्यादातर आसपास रहने वाली पब्लिक ही आती है। कई लोगों के चेहरे तो जाने-पहचाने हो गए हैं। हमारे यहां दिलवाले.. के शो का टिकट रेट काफी कम है। ऐसे में, बाईस रुपये में दर्शकों को तीन घंटे एसी में बैठने का मौका, विदेश के नजारे और साथ में ढेर सारा मनोरंजन मिल जाए, तो वे खींचे तो आएंगे ही।
दिल अभी भरा नहीं : फिल्म दिलवाले.. को जितनी बार देखो, दिल नहीं भरता। इसी एक बार के चक्कर में पचीस वर्षीय पायल खान फिल्म को अनगिनत बार देख चुकी हैं। पति के साथ मराठा मंदिर से फिल्म देखकर बाहर निकलीं पायल बताती हैं, पहले मैं अकेले इसे देखने आती है। आठ साल पहले जब मैंने इसे पहली बार देखा था, तब मैं राज को ढूंढती थी। अब अपने राज के साथ इस फिल्म को देखने आती हूं। सांताक्रूज निवासी अट्ठारह वर्षीय भोला बताते हैं, मैंने टीवी पर इस फिल्म को कई बार देखा है, लेकिन थिएटर में देखने का मजा अलग है। मैं अब तक पांच बार इसे देख चुका हूं। मैं राज की तरह बनना चाहता हूं।

-raghuvendra/Somya

1 comment:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

Very good commentary on DDLJ. Please read my experiences at http://www.nishantam.com/2009/10/ddlj.html/