Friday, January 9, 2009

बहादुरी के लिए मिला था राष्ट्रपति पुरस्कार: मुजम्मिल इब्राहिम/बचपन

सुपरमॉडल मुजम्मिल इब्राहिम का बचपन कश्मीर की खूबसूरत वादियों में बीता है। वे पहले मॉडलिंग और अब एक्टिंग व‌र्ल्ड में तेजी से पहचान बना रहे हैं। फिल्म 'धोखा' और 'हॉर्न ओके प्लीज' में अभिनय करने वाले मुजम्मिल अपने बचपन की सुनहरी यादों को पाठकों से बांट रहे हैं-
[बचपन से था होनहार]
मैं बचपन से होनहार रहा हूं। मैंने हमेशा सबका प्यार पाया है। इसकी सबसे बड़ी वजह मेरा व्यवहार और नेक काम थे। मुझे दस साल की उम्र में राष्ट्रपति के हाथों बहादुरी का पुरस्कार मिला था। मैंने नदी में डूबते हुए एक बच्चे की जान बचाई थी। अब तक मुझे कुल 57 पुरस्कार मिल चुके हैं। मुझे स्कूल में हमेशा ही सबसे अनुशासित छात्र का पुरस्कार दिया जाता था। मेरा रूम प्रमाणपत्रों और पुरस्कारों से सजा हुआ है।
[बुरी लगती थी नसीहतें]
मैं बचपन में ज्यादा शरारतें नहीं करता था। अपनी पढ़ाई और खेल में व्यस्त रहता था। मेरी पढ़ाई एक कान्वेंट स्कूल में हुई है। मैं स्कूल का होनहार छात्र था। मम्मी-पापा मुझे हमेशा समझाते रहते थे। वे मुझे नसीहतें देते रहते थे। उस वक्त उनकी वह बातें बहुत बुरी लगती थीं, लेकिन आज उन बातों का मोल समझ आता है। मेरे मम्मी-पापा ने कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाया। उनकी नसीहतों की देन है जो आज मैं अच्छे रास्ते पर चल रहा हूं और हर तरह की बुराई से दूर हूं।
[मम्मी के अधिक करीब रहा]
मैं शुरू से अपनी मम्मी के अधिक करीब रहा हूं। उन्हें मैं सबसे अधिक प्यार करता हूं। उनके बिना मैं एक दिन भी नहीं रह सकता। मैं मम्मी के लिए कुछ भी कर सकता हूं। मुझे याद है। मैं नौवीं कक्षा में था। किसी ने मम्मी के नाम पर शर्त लगा दी। मुझे बिना रस्सी को छुए हुए झील पार करनी थी। मैंने अपनी मम्मी के लिए वह भी किया। मैं आज भी सब कुछ अपनी मम्मी के लिए ही करता हूं।
[सोचा नहीं था एक्टर बनूंगा]
मैं पढ़ने में होनहार था, इसलिए मेरे मम्मी-पापा चाहते थे कि मैं बड़ा होकर इंजीनियर बनूं। मैं भी जी-जान से मम्मी-पापा के सपनों को पूरा करने में लगा रहा, लेकिन नसीब मॉडलिंग और फिर अब एक्टिंग में लेकर आ गया है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं बड़ा होकर एक्टर बनूंगा। हां, मेरे फ्रेंड जरूर कहते थे कि तुम्हे एक्टिंग में जाना चाहिए।
[याद आता है बचपन]
मैं बचपन को बहुत मिस करता हूं। दोस्तों के साथ बिताए खंट्टे-मीठे पल याद करता हूं तो दिल करता है कि फिर से उन्हीं दिनों में चला जाऊं। कश्मीर का सुनहरा मौसम, वहां का खाना, दोस्तों के साथ खेले खेल; मैं सबको मिस करता हूं। मुझे याद नहीं कि आखिरी बार मैंने कब कोई खेल खेला था। अब सारे दोस्त बिछड़ चुके हैं। अपनी-अपनी नौकरियों और जिंदगियों में व्यस्त हैं!
-रघुवेंद्र सिंह

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