Monday, November 24, 2008

बहुत कुछ पाने की चाह है: अमोल पालेकर /24 नवंबर, जन्मदिन पर विशेष..

-रघुवेंद्र सिंह
अमोल पालेकर अब अपना अधिकतर समय मुंबई की शोरगुल और आपाधापी भरी जिंदगी से दूर पुणे में बिताते हैं। वे नई फिल्मों की योजनाएं भी वहीं बनाते हैं। आगामी 24 नवंबर को वे चौंसठ साल के हो जाएंगे। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी सक्रियता बरकरार है। आजकल वे निर्देशक की कुर्सी पर बैठकर अपनी फिल्मों से फिल्मी दुनिया को समृद्ध बना रहे हैं।
थिएटर से किया आगाज : ऐक्टर बनने से पहले अमोल पालेकर थिएटर जगत में निर्देशक के रूप में स्थाई पहचान बना चुके थे। नामचीन निर्देशक सत्यदेव दुबे के साथ उन्होंने मराठी थिएटर में कई नए प्रयोग किए। बाद में 1972 में उन्होंने अपना थिएटर ग्रुप अनिकेत शुरू किया। अमोल पालेकर के शब्दों में, आज की पीढ़ी पूछती है कि मैंने ऐक्टिंग छोड़कर निर्देशन करना क्यों शुरू दिया? वे इस बात से अनजान हैं कि मैं ऐक्टिंग में आने से पहले थिएटर में निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बना चुका था। बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु भट्टाचार्य मेरा नाटक देखने आया करते थे। जब मैंने ऐक्टिंग में कदम रखा, तब थिएटर में मेरा चरमोत्कर्ष था।
मध्यवर्गीय समाज के नायक: 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फिल्म शांतता कोर्ट चालू आहे से अमोल ऐक्टिंग में आए। यह मराठी सिनेमा की उल्लेखनीय फिल्म कही जाती है। हिंदी फिल्मों में उन्होंने सन 1974 में बासु चटर्जी की फिल्म रजनीगंधा से कदम रखा। फिल्म सफल हुई और फिर उनके अनवरत सफर का आगाज हो गया। उन्होंने ऐक्टर के रूप में चितचोर, घरौंदा, मेरी बीवी की शादी, बातों-बातों में, गोलमाल, नरम-गरम, श्रीमान-श्रीमती जैसी कई यादगार फिल्में दीं। वे ज्यादातर फिल्मों में मध्यवर्गीय समाज के नायक का प्रतिनिधित्व करते दिखे। उनकी हास्य फिल्मों को दर्शक आज भी याद करते हैं। वे कहते हैं, मुझे खुशी है कि अपने करियर में फिल्म इंडस्ट्री के श्रेष्ठ निर्देशक और श्रेष्ठ तकनीशियनों के साथ काम कर सका। उनके सान्निध्य में फिल्म निर्माण के तमाम पहलुओं से परिचित हुआ। ढेर सारा प्यार और आदर के लिए मैं सबका शुक्रगुजार हूं।
निर्देशन में बनाई अलग पहचान: सन 1981 में मराठी फिल्म आक्रित से अमोल ने फिल्म निर्देशन में कदम रखा। अब तक वे कुल दस हिंदी-मराठी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। उनकी पिछली हिंदी फिल्म पहेली को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। वे खुशी व्यक्त करते हुए कहते हैं, मैंने निर्देशक के रूप में मनमाफिक फिल्में बनाई। आज पीछे पलटकर देखता हूं, तो खुशी होती है। बहुत जल्द फिल्म दुमकटा रिलीज होगी। मेरी यह फिल्म बासु दा और ऋषिकेष मुखर्जी को समर्पित होगी।
सिनेमा का विभाजन पसंद नहीं: शुरू से भाषा के आधार पर सिनेमा के विभाजन के खिलाफ रहे हैं अमोल। उन्हीं के शब्दों में, सिनेमा को भाषा के आधार पर बांटना अच्छी बात नहीं है। उसके अतिरिक्त क्षेत्रीय फिल्मों को नजरंदाज करना भी अच्छा नहीं है। हमेशा सिर्फ हिंदी फिल्मों की बात करना गलत है। गौर करें, तो पाएंगे कि हिंदी से अच्छी फिल्में और फिल्मकार रिजनल सिनेमा में हैं। रिजनल फिल्मों को हम भाषाई सीमा में बांधकर मार रहे हैं। सिनेमा भाषा, देश, संस्कृति आदि की सीमा से परे है।
सुखदाई रहा सफर: बहुत खुशनुमा रहा है अमोल पालेकर का अब तक का सफर। उन्हें हमेशा सबका प्यार मिला है। बस, उनकी ऐक्टिंग को प्रशंसक जरूर मिस करते हैं। वे आखिरी बार बड़े पर्दे पर राकेश मेहरा की फिल्म अक्स में दिखे थे। उन्हीं के शब्दों में, मुझे एक तरह का काम करना पसंद नहीं है। यदि मुझे चुनौतीपूर्ण भूमिका मिले, तो मैं आज भी ऐक्टिंग में वापसी कर सकता हूं। मैं अपने सफर से संतुष्ट हूं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ पाने की चाह है।

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