Sunday, October 12, 2008

काश फिर लौट आएं वे दिन: मिनिषा लांबा

[रघुवेंद्र सिंह]
धरती के स्वर्ग कश्मीर की खूबसूरत अप्सरा हैं अभिनेत्री मिनिषा लांबा, जो इन दिनों दिलकश अदाकारी और मासूम मुस्कुराहट से सबका दिल जीत रही हैं। मिनिषा का जन्म कश्मीर की खूबसूरत वादियों में हुआ और उनका चुलबुला बचपन दिल्ली में गुजरा। बचपन की यादों को उन्होंने शेयर किया 'सप्तरंग' के साथ-
[खूब लड़ती थी भाई से]
मैं बचपन में दूसरों से ज्यादा मतलब नहीं रखती थी। मैं अपने छोटे भाई करन के साथ ज्यादा रहती थी। हम दोनों मिलकर खूब मौज-मस्ती और शैतानियां करते थे। स्कूल से वापस आते ही हम क्रिकेट खेलने में जुट जाते थे और तब तक क्रिकेट खेलते थे, जब तक या तो सूरज नहीं छुप जाता था या फिर हमारी गेंद नहीं गुम हो जाती थी। मैं सबसे ज्यादा अपने भाई के साथ लड़ती थी। हम आपस में तो खूब लड़ते थे, लेकिन कोई बाहरी मेरे भाई को कुछ कह देता तो मैं उससे बिना कुछ सोचे-समझे भिड़ जाती थी। यह नहीं देखती थी कि वह मुझसे बड़ा है या छोटा। आज मैं सबसे ज्यादा अपने भाई को ही प्यार करती हूं।
[पढ़ाई और खेल को समान महत्व]
मैं पढ़ने में एवरेज स्टूडेंट थी। मेरी टीचर अक्सर क्लास में कहा करती थीं कि मिनिषा में बहुत पोटेंशियल है, लेकिन वह ध्यान लगाकर नहीं पढ़ती है। अगर वह ध्यान लगाकर पढ़े तो और अच्छे अंकों से पास होगी। दरअसल, मैं उतना ही पढ़ती थी जितना जरूरी होता था। मैं किताबी कीड़ा नहीं थी। मैं ऐसा स्टूडेंट बनना ही नहीं चाहती थी, जो दिन-रात किताबों में घुसा रहे। मैं पढ़ाई और खेलकूद को समान रूप से महत्व देती थी। मेरे मम्मी-पापा कहते थे कि पढ़ाई जितना ही जरूरी खेलकूद भी है।
[बड़े प्यार से हुई परवरिश]
मेरे मम्मी-पापा ने बड़े प्यार से मेरी परवरिश की है। वे हमेशा मेरे साथ नरमी से पेश आते थे। हाँ, अगर मैं कोई गलती कर देती थी तो वे मेरे साथ सख्ती से पेश आने में नहीं हिचकते थे। मुझे अपने मम्मी-पापा के सख्त रूप का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि मैं गलत काम करती ही नहीं थी। हमारे घर में शुरू से कुत्ते पाले जाते रहे हैं। एक कुत्ता तो अब पन्द्रह साल का हो चुका है। मैं आज भी जब घर जाती हूं तो उसके साथ खूब खेलती हूं। वह मेरे बचपन का साथी है।
[मिस करती हूं बचपन]
मैं अपने बचपन को आज बहुत मिस करती हूं। मैं बचपन में सोचा करती थी कि जल्दी से बड़ी हो जाऊं ताकि बड़ों जैसी हरकतें कर सकूं, लेकिन आज लगता है कि काश, फिर से बचपन में चली जाऊं। काश वे दिन लौट आएं। बहरहाल, हर उम्र का अपना मजा होता है। मैं जिंदगी के इस दौर का भी भरपूर लुत्फ उठा रही हूं। जो अभी बच्चे हैं, उनसे कहना चाहूंगी कि अपने बचपन को जमकर एंज्वॉय कीजिए। ऐसे लम्हे जिंदगी में दोबारा नहीं आते।

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