Saturday, September 13, 2008

क्रिकेट के लिए बंक करता था क्लास: शाइनी आहूजा

[रघुवेंद्र सिंह]
अभिनेता शाइनी आहूजा आम लोगों के बीच गंभीर कलाकार के तौर पर जाने जाते है। वास्तविक जीवन में वे अत्यंत खुशमिजाज और मिलनसार है। पढ़ो शाइनी के बचपन की कहानी, उन्हीं की जुबानी-
[माहिर था दोस्त बनाने में]
मेरा बचपन बहुत रंगीन था। मेरे पापा आर्मी में थे, इसलिए मुझे छोटी उम्र में ही देश के अलग-अलग शहरों में घूमने का अवसर मिला। मुझे विभिन्न शहरों की बोली और वहां का कल्चर सीखने को मिला। तब मेरे लिए हर दो साल बाद बड़ा चैलेंज दोस्त बनाने का होता था, क्योंकि पापा की पोस्टिंग बदल जाती थी। मुझे बड़ा मजा आता था, क्योंकि मैं दोस्त बनाने में माहिर था। यह बचपन में मेरी खासियत थी। सच कहूं, शहर-शहर घूमने से मेरा व्यक्तित्व स्वत: विकसित होता गया।
[कभी मार नहीं पड़ी]
मैं बचपन में पढ़ने और खेलने दोनों में निपुण था। मेरे पसंदीदा खेल फुटबॉल और क्रिकेट थे। मैं अक्सर क्लास बंक करके क्रिकेट खेलने चला जाता था। एक वाकया बताता हूं। मैं दिल्ली आर्मी पब्लिक स्कूल में पढ़ाई कर रहा था। एक दिन मैं क्लास बंक करके क्रिकेट खेल रहा था। मेरी टीम हार रही थी और मुझे बैटिंग के लिए भेजा गया। मैंने उस दिन आठ छक्के मारे। मेरे आखिरी सिक्सर से मेरी टीम मैच जीत गई। मजेदार बात यह है कि मेरा आखिरी सिक्सर जहां जाकर गिरा, मैंने देखा कि वहाँ मेरे पापा टिपिकल आर्मी ऑफिसर की तरह खड़े गुस्से में मुझे देख रहे थे। दरअसल वे मुझसे मिलने आए थे। पहले क्लास में गए। वहां टीचर ने बताया कि मैं एब्सेंट हूं। वे मुझे ढूंढते हुए ग्राउंड में आए। उस वक्त मैं उन्हे देख रहा था और मेरे दोस्त मुझे उठाकर जीत का जश्न मना रहे थे। उस दिन मुझे बहुत डांट पड़ी। मैं लकी हूं कि मुझे लविंग और चार्मिग पैरेट्स मिले। मुझे कभी उनके हाथों मार नहीं पड़ी।
[एक्टिंग में मिली मदद]
पापा के साथ विभिन्न शहरों में घूमने का फायदा आज मुझे अपने प्रोफेशन में मिलता है। आज मुझे शहर, गांव या किसी क्षेत्र विशेष का किरदार निभाने का मौका मिले तो मैं उसे गहराई से जीवंत करूंगा क्योंकि मैं उस किरदार की मानसिक स्थिति को समझ सकता हूं। मैंने बचपन में जो सपने देखे, सब हकीकत में पूरे हुए। कुछ सपनों को फिल्मों में पूरा कर लेता हूं।
[लाइफ का बेस्ट टाइम बचपन]
बचपन लाइफ का बेस्ट टाइम होता है। इसे जमकर एंज्वॉय करना चाहिए। अपने मम्मी-पापा की बातों पर अमल करना चाहिए। पढ़ाई के साथ ही खूब खेलना चाहिए। बाद में सब काम आता है। आज मैं बचपन को मिस करता हूं, लेकिन जिंदगी के इस दौर को भी एंज्वॉय कर रहा हूं, क्योंकि कल यह भी चला जाएगा।

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